सहमा सहमा, डरा डरा
कंपकंपाते हुए
डगमग डगमग कदम बड़े
किसी अंजान मंजिल की और
हर राह दिखी खुबसूरत
हर दिशा मन् दौड़ चला
पहले कदम की थी ना हिम्मत
गधा, वही की वही रह गया
सोचा आएगा कोई मसीहा
सही दिशा, सही राह,
हिम्मत और चलने का साह
देखते हुए सपने, राह तकता रहा
देखके दुसरो की चाह
बस जलता रहा
पहला कदम रखने से पहले
राह से डरता रहा
सहमा सहमा डरा डरा
रोते हुए अपनी किस्मत पे
जिंदगी से मोहब्बत कर ना सका
जीते जीते ही जिन्दा लाश बन गया
-
किर्तन
हमेशा की तरह विषय से परे चल पड़ा :P
Monday, September 14, 2009
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